मूंग की फसल उत्पादन तकनीक
मध्यप्रदेश में मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसके दाने का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिये किया जाता है, जिसमें 24-26ः प्रोटीन, 55-60ः कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3ः वसा होता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में गठाने पाई जाती है जो कि वायुमण्डलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टयर) एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियो के रूप में प्रति हैक्टयर 1.5 टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ा जाता है जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवं मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ाती है। मध्यप्रदेश में मूंग की फसल हरदा, होशंगाबाद, जबलपुर, ग्वालियर, भिण्ड, मुरेना, श्योपुर एवं शिवपुरी जिले में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। मध्यप्रदेश की औसत उत्पादकता लगभग 350 किलोग्राम प्रति हैक्टयर है। धार जिले में 5.89 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में 3.016 हजार टन मूंग का उत्पादन होता है, तथा औसत उत्पादकता 512 किग्रा. प्रति हेक्टेयर है, जो कि बहुत कम है, जिसके बढने की प्रबल सम्भावनायें है। अतः कृषक भाई उन्नतशील प्रजातियो एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर पैदावार को 12-15 क्विंटल प्रति हैक्टयर तक प्राप्त कर सकते है।
जलवायु:
भारत में मूंग की खेती सभी ऋतुओं में की जाती है परंतु मध्य भारत में मूंग की खेती वर्षा एवं जायद (ग्रीष्म) ऋतु म होती है। मूंग की अच्छी फसल के लिए गर्म एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए सबसे अनुकूल तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस होता है, लेकिन यह 40 डिग्री सेल्सियस तक सहनशील है। मूंग की वृद्धि के लिए 60-75 सेमी. वर्षा उपयुक्त है लेकिन फूल आने के समय वर्षा होना हानिकारक है क्योकि यह परागण एवं निषेचन को प्रभावित करता है और कवक रोगों की घटनाओं को बढ़ावा देता है।
भूमि का चुनावः
मूंग भारत की विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट और बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मूंग की खेती के लिए लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी उपयुक्त नही होती है।
भूमि की तैयारी:
भूमि तैयारी हेतु 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर करने बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे मृदा भुर-भुरी हो जाए और मृदा में नमी सरंक्षित रहे साथ ही खरपतवार रहित भी होना चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल के लिए रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। जब खेत अच्छी स्थिति में आ जाए तो खेत को अच्छी तरह जुताई कर बुवाई करें।
भूमि शोधन:
फसल को भूमि जनित रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडरमा हारजियेनम 2 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2.5 किग्रा. मात्रा एवं 60-75 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त प्रति हेक्टेयर आखिरी जुताई के समय खेतों में मिला दें। दीमक, सफेद गिडार, सूत्रकृमि, जड़ की सूण्डी, कटवर्म आदि कीटों से बचाव हेतु ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.बायोपेस्टीसाइड्स की 2.5 किग्रा. मात्रा एवं 60-75 किग्रा. गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व प्रति हेक्टेयर आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देना चाहिए।
बुवाई का समय:
खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।
बीज दर:
मूंग फसल के लिए खरीफ में 12-15 किग्रा./हे. एवं ग्रीष्मकालीन में 20-25 किग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती
है। बुवाई फर्टिलाईजर कम सीड ड्रिल से करने से बीज के साथ उर्वरकों का प्रयोग आसानी से सही स्थान पर किया जा सकता है।
बीज उपचार:
एक किग्रा. बीज को 2 ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण 3 ग्राम/किग्रा. से शोधित करने के बाद बोने से पहले बीज को मूंग के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट 10 किग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता है। एक पैकेट राइजोबियम कल्चर को साफ पानी में घोल बनाकर 10 किग्रा. बीज के उपर छिड़ककर हल्के हाथ से मिलायें जिससे बीज के उपर एक हल्की परत बन जाये। इस बीज की बुवाई छाया में सुखाने के बाद तुरंत करें। तेज धूप से कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है।
बुवाई का तरीका:
मूंग की अच्छी फसल हेतु बीज को हल के पीछे पंक्तियों अथवा कतारों में बुवाई करना चाहिए। खरीफ में कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी. तथा ग्रीष्मकालीन में 20-22.5 सेमी. रखनी चाहिए। बीज को 3-5 सेमी गहराई पर बोना चाहिए जिससे अंकुरण अच्छा हो। बुवाई फर्टिलाईजर कम सीड ड्रिल से करने से बीज के साथ उर्वरकों का प्रयोग आसानी से सही स्थान पर किया जा सकता है।
उन्नत किस्मेंः
किस्म अवधि उपज विवरण
पी.डी.एम.-54 70-75 10-12 दाना हरा चमकदार
पी.डी.एम.-11 65-70 10-12 दाना हरा चमकदार
पी.डी.एम.-139 60-65 8-10 दाना हरा चमकदार
टी.एम.-9937 60-75 12-15 दाना बड़ा हरा
मालवीय जन कल्याणी 55-60 12-15 दाना बड़ा हरा
आई.पी.एम.2-3 65-70 10-11 हरा चमकदार दाना
आई.पी.एम. 410-3 (शिखा)65-70 14-16 प्ीला मोजक एवं पाउडरी मिल्डयु रोग नही लगता
श्वेता के.एम.- 2241 60-65 10-12 हरा चमकदार दाना
स्वाति के.एम.-2195 60-65 10-11 पीला चित्रवर्ण अवरोधी
विराट आई.पी.एम. 205-7 52-56 10-12 पीला पाउडरी अवरोधी
आई.पी.एम. 2-14 62-70 10-12 पीला चित्रवर्ण अवरोधी, खरीफ एवं ग्रीष्म ऋतु हेतु
जवाहर -12 75-85 10-13 हरा चमकदार दाना
एम.एल.- 267 85 15-16 दाना बड़ा चमकदार
पूसा विशाल 65-70 12-15 दाना बड़ा चमकदार हरा, खरीफ एवं ग्रीष्म ऋतु हेतु
उर्वरक एवं खाद प्रबंधन:
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। मिट्टी परीक्षण न होने की दशा में 15-20 किग्रा. नत्रजन, 40-50 किग्रा. फास्फोरस, 20 किग्रा. पोटाश तथा 20 किग्रा. गंधक प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में बुवाई के समय देना चाहिए। फलीं बनने के समय 2 प्रतिशत यूरीया घोल के छिड़काव से उपज में 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
सिंचाई:
वर्षा ऋतु में मूंग को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है फिर भी नमी की कमी होने पर फलियाॅ बनते समय एक हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। मूंग की ग्रीष्मकालीन फसल के लिए हल्की भूमि में 4 से 5 बार जबकि भारी भूमि में 2 से 3 बार सिंचाई की जाती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। निमाड़ क्षेत्र में टपक (ड्रिप) सिंचाई पद्धति से बुवाई करने पर बीज की मात्रा 10-12 किग्रा. प्रति हेक्टेयर लगती है, तथा उत्पादन 15-16 क्विंटल/हेक्टेयर तक लिया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण:
खरपतवार नियंत्रण न करने पर 40 से 50 प्रतिशत तक उपज में कमी हो सकती है। नियंत्रण हेतु पहली निराई-गुड़ाई 15 से 20 दिनों तथा द्वितीय 30 से 35 दिन के अंतराल पर करना चाहिए। श्रमिको की उपलब्धता न होने के कारण रासायनिक विधि से खरपतवार प्रबंधन किया जाना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी रहता है।
शाकनासी का नाम सक्रिय तत्व मात्रा (ग्राम या मिली./प्रतिहे.) व्यापारिक मात्रा(ग्राम या मिली./प्रति हे.) प्रयोग समय बुवाई/रोपाई के दिन बाद टिप्पणी
पेन्डीमिथालिन 30: 1000-1250 3330-4160 बुवाई से पहले या बुवाई के 0-3 दिन के अंदर सभी प्रकार के घास एवं कुछ चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।
पेन्डीमिथालिन 38.7ः 796 1750 बुवाई के 2-3 दिने अंदर वार्षिक घास कुल एवं कुछ चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण। शुष्क भूमि में भी प्रयोग किया जा सकता है।
आक्साडायाजोन 34.4: 500-750 2000-3000 0-3 दिन के अंदर सकड़ी एवं चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।
आक्सीफ्लोरफेन23.5ः 150-250 600-1000 0-3 दिन के अंदर सभी प्रकार वार्षिक घास कुल कुछ चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।
ऐसीफ्लोरोफेन सोडियम 16.5ः $ क्लोडिनोफाॅप 8ः - 1000 15-25 दिन के अंदर मुख्यतः घास कुल एवं चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण।
क्यूजालोफाॅप ईथाइल 5ः ई.सी. 45-50 800-1000 15-20 दिन के अंदर घास कुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।
ईमीजेथापायर 10ः एस.एल. 70-80 800-1000 20-22 दिन के अंदर सकड़ी एवं चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।
रसायन की मात्रा 500-600 लीटर पानी में मिलाकर उपरोक्त समय अनुसार छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण:
मूंग फसल पर काटने वाले एवं रसचूसक दोनों प्रकार के कीटो का प्रकोप होता है। भेदक कीटों में पिस्सू, भृंग, फली भेदक कीट तथा पत्ती मोड़क कीट प्रमुख हैं, जिनके नियंत्रण कें लिए प्रोफेनोफाॅस की 1 लीटर या क्लोरेन्ट्रानिलिट्रोल की 500 मिली. या स्पाइनोसैड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करें। रसचूसक कीट जैसे सफेद मक्खी, थ्रिप्स या जैसिड्स के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली. या डाइमिथिएट की 800 मिली. प्रति हेक्टेयर मात्रा का छिड़काव करें।
रोग नियंत्रणः
1. पीला चितकबरी (मोजेक) रोग -
नियंत्रण-रोग प्रतिरोधी अथवा सहनशील किस्मो जैसे टी.जे.एम. -3, के -851, पन्त मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम.-1 का चयन करे। प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का प्रयोग करे। बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाडकर नष्ट करें। यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट है जिसे नियंत्रित करने के लिये ट्रायजोफॉस 40 ईसी, 2 मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथोक्साम 25 डब्लू. जी. 2 ग्राम/ली. या डायमेथोएट 30 ईसी, 1 मिली./ली. पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
2. सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग -
नियंत्रण- रोग रहित स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें। खेत में पौधे घने नही होने चाहिये पौधो का 10 सेमी. की दूरी के हिसाब से विरलीकरण (घने पौधो को निकाले) करे। रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. की 2.5 ग्राम लीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू. पी. की 1 ग्राम/ली. दवा का घोल बनाकर 2-3 बार छिड़काव करे।
3. एन्थ्राक्नोज रोग -
नियंत्रण- प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का चयन करे। फफंूद नाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. 2.5 ग्राम/ली. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू. पी. की 1ग्राम/ली. का छिडकाव बुवाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात् करे।
4. चारकोल विगलन रोग -
नियंत्रण- बीजापचार कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू. जी. 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से करे। 2-3 वर्ष का फसल चक्र अपनाये तथा फसल चक्र में ज्वार, बाजरा फसलों को सम्मिलित करें।
5. भभूतिया (पावडरी मिल्डयू) रोग -
नियंत्रण- रोग प्रतिरोधी किस्मो का चयन करें। समय से बुवाई करे। रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम/ली. पानी की दर से छिड़काव करे।
कटाई व गहाई:
कटाई समय पर किया जाना आवश्यक होता है। जब मूंग की 85 प्रतिशत फलियां परिपक्व हो जाए तब फसल की कटाई करें। अधिक पकने पर फलियां चटक सकती है। कटाई उपरांत फसल को गहाई करके बीज को 9 प्रतिशत नमी तक सुखाकर भण्डारण करें।
उपज:-
उपरोक्त तकनीकी को अपनाकर किसान भाई 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मूंग का उत्पादन ले सकते है।